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मैं आज 18 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा हूँ।

AOL Desk
Last updated: 2022/11/30 at 3:05 PM
AOL Desk Published November 30, 2022
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आज 30 नवम्बर को मैंने 17 वर्ष पूर्ण कर 18 वें वर्ष में प्रवेश किया। 2005 में मैंने आज ही के दिन मैंने  पहली बार अल्मोड़ा को देखा। लेकिन अल्मोड़ा ने मुझे बहुत देर मे देखना शुरू किया।

मुझे देखने के लिए तब इंटरनेट की ज़रूरत होती, जो तब बहुत धीमा था, ज़्यादातर लोग ईमेल भेजने या कोई सूचना खोजने को ही इसका इस्तेमाल करते। और स्मार्टफ़ोन भी नहीं थे तो डेस्कटॉप कंप्यूटर में ही ज़्यादातर इंटरनेट का उपयोग होता। और अपने इस ख़ास दिन पर मैं यानि AlmoraOnline.com आप सबका अभिनंदन करता हूँ।

मैं सौभाग्यशाली हूँ, मैं एतिहासिक और अतुलनीय नगर – अल्मोड़ा का पहला गैर-सरकारी सोशल/ पर्यटन पोर्टल बना। और समय के साथ बदलते अल्मोड़ा को देखते रहा और दस्तावेजों को संग्रहित करता रहा और अलग अलग तरह से उन्हें दुनिया को दिखाता रहा। मैं इसलिए भी सौभाग्यशाली हूँ कि समय-2 पर सभी का प्यार और सहयोग मिला।

मैंने जब अल्मोड़ा को पहली बार महसूस किया –  उन दिनों  ठंड बढ्ने लगी थी, मेरे निर्माण के अगले दिन दिसंबर जो शुरू हो रहा था। आज ही के दिन मैंने 17 वर्ष पूर्ण कर लिए। इन दिनों ठंड और भी बढ़ने लगती है। गृहणियाँ चाहती हैं – सुबह जल्द से घर के काम खत्म कर धूप मे जाएँ, प्रौढ़ और युवा तो सुबह की बूंद-बूंद धूप को समेटने, अपने आँगन, छत या रास्तों में निकल जाते। और बच्चे, उनका क्या – उनको कहाँ ठंड लगती है!

इस पहाड़ी में रहने वाले, जहां सूर्य देव की देर से कृपा होती, दूसरी पहाड़ी में सुबह की जल्दी आती धूप देखकर सोचते – काश वहाँ अपना घर होता, शाम को यहाँ अधिक देर तक खिलती धूप को देख दूसरे पहाड़ी के लोग, जहां जल्दी धूप चली जाती है, इस पहाड़ी वालों के लिए, ऐसे ही कुछ ख्याल होते। 

आज आप अपने सुविधानुसार समय पर ऑनलाइन मुझे देख रहे हैं, पर तब सुबह आने वाला अखबार ही दिन भर मे मारी जाने वाली गप्पों के टोपिक्स लेकर आता। अपनी-अपनी रुचि के अनुसार लोग खबरें आपस मे एक्सचेंज कर अपना दिन का समय पास करते। जो अखबार के साथ एक – दो मासिक पत्रिकाएं या कुछ पुस्तक भी पढ़ लेते। वो विभिन्न मसलों की समीक्षा कर अपनी महफ़िल मे अतिरिक्त जानकार या बुद्धिजीवी होने का खिताब ले जाते। 

मैंने अल्मोड़ा एक स्थानीय और दुनिया भर के लोगों को को जोड़ने की कोशिश थी। तब कुछ जानकार लोग कहते थे कि – अल्मोड़ा में कौन समझेगा इसे। कही बड़े शहर में पोर्टल बनाना चाहिए। अल्मोड़ा के बारे में यह मिथ सुना था – कि यहाँ लोग क्रिएटिव ऐक्टिविटीज़ को उखाड़ने पर विश्वास रखते है। और अपने पक्ष में कुछ कलाकारों, साहित्यकारों या राजनेताओं का उदाहरण रखते।

जबकि यह सर्वथा ग़लत महसूस किया मैंने। मैंने जाना कि यहाँ लोग इतनी क्रिएटिव एनर्जी, अनुभव और पॉज़िटिविटी से भर देते है – कि फिर दुनिया में कहीं भी यहाँ के लोग सहज ही अपनी जगह बना लेते है। और पूरा विश्व उनके लिए क्रीड़ास्थल हो जाता है। मेरा अनुभव अल्मोड़ा के लिए जादुई रहा उस समय जब डिजिटल टेक्नोलॉजी का ज़्यादा प्रभाव अल्मोड़ा तो क्या पूरी दुनिया में भी ज़्यादा नहीं था। तब भी अल्मोड़ा के लगभग सभी प्रमुख बिज़नेस प्रतिष्ठानों, होटेल्स, स्कूल्स ने मुझे (almoraonline.com) को स्पॉन्सर कर मेरे निर्माण में सहयोग दिया। उन सभी बिज़नेस की लिस्टिंग आज भी मेरे पेजेज में देखी जा सकती है। और उन सबके विश्वास के कारण मैं आज भी आपके सामने हूँ।

अल्मोड़ा पर मैंने अपने अनुभव और अनुभूतियाँ अपने डिजिटल सखा – PopcornTrip चैनल को कुछ अलग अन्दाज़ में वीडियो बनाने को सुझाया, जो उन्होंने बनाया भी। अल्मोड़ा को घर बैठे या दूर से महसूस करने और जानने के लिए इससे बेहतर क्या हो। देखें यह वीडियो:

अल्मोड़ा कल और आज!

इस विडियो से कुछ पंक्तियां।

मैं अल्मोड़ा का हूँ और उन सब का भी जो यहाँ के है, और  उन सबका भी जो यहाँ कभी रहे हैं। अल्मोड़ा उत्तराखंड के विख्यात और ऐतिहासिक स्थानों में से एक हैं। कई लोग अल्मोड़ा का परिचय उत्तराखंड की सांस्कृतिक राजधानी के रूप में भी देते हैं। कई बातें जो दुनिया मे कहीं और देखने – जानने को नहीं मिलेंगी। उन्हीं बातों को तलाशने के साथ, करेंगे अल्मोड़ा को एक्सप्लोर मेरे साथ।

दो दशक पहले –  जब मैंने अल्मोड़ा को जानना शुरू किया –  तब लोग अल्मोड़ा में लाला बाजार से पलटन बाज़ार तक तक तो लगभग  रोज ही घूम आते। अब भी शायद जाते हों।  यह दोनों स्थान अल्मोड़ा की मशहूर पटाल बाज़ार के दो कोनो पर स्थित हैं, जिसके बीच में चौक बाज़ार, कारखाना बाज़ार, खजांची मोहल्ला, जौहरी बाज़ार,  गंगोला मोहल्ला, थाना बाज़ार आदि नाम से जानी जाने वाली कुछ – 2 दूरी पर स्थित बाज़ार हैं, जिनके साथ लोगों के रिहायशी मकान भी। अल्मोड़ा का मशहूर मिलन चौक, नाम के अनुरूप – यहाँ रोड के किनारे खड़े हो, मित्रो, परिचितों के मध्य अक्सर अनौपचारिक मीटिंग्स हुआ करती।

दो दशक पहले तक, जब चार – छह किलोमीटर चलना, बेहद छोटी दूरी मानी जाती थी, और इतनी कम दूरियां पैदल ही तय होती थी। तब तक तक दुपहिया – चौपहिया अल्मोड़ा में इतने प्रचलन में नहीं आये थे, अल्मोड़ा स्नातकोत्तर कॉलेज कैंपस जो अब सोबन सिंह जीना यूनिवर्सिटी के रूप में पहचाना जाता है, की पार्किंग मे बमुश्किल चार – पांच दुपहियाँ वाहन खड़े दिखाई देते थे।

अल्मोड़ा की भौगोलिक सरंचना अल्मोड़ा के लोगों को – ट्रैकिंग के प्राकर्तिक रूप से तैयार करके रखती, हर जगह पहुंचने के लिए कितनी ही सीढियाँ। राह में मिलने वाले – अक्सर परिचित अथवा मित्र बन जाया करते थे,  परिचित मित्र अपने दूसरे मित्रो से मिलाते – और सोशल नेटवर्किंग डेवेलप हो जाया करती थी और फ्रेंडशिप नेटवर्क का दायरा बड़ा होता रहता।

बिना मोबाइल के भी – सभी जरुरी लोग शाम को बाजार में घूमते हुए मिल जाते, ज्यादातर मिलन चौक से रघुनाथ मंदिर के बीच, जरुरत हुई तो राह में चलते परिचित लोग बता देते फलां – फलां वहां है। सोशल ग्रुप्स तब मोहल्ले हुए करते थे, और मोहल्ले के मिलनसार बह्रिमुखी लोग – वहां के एडमिन।

कमेंट, लाइक्स, डिसलाइक्स सजीव हुआ करते थे, इमोजी की जगह लाइव स्माइल्स, इमोशन ‘शब्दों’ की जगह दिल से निकलते और

स्वामी विवेकानंद ने अल्मोड़ा के लिए कहाँ था – “ये पहाड़ मनुष्य जाति  की सर्वोतम धरोहरों से जुड़े है, यहाँ न सिर्फ सैर करने का बल्कि उससे भी अधिक ध्यान की नीरवता का और शांति का केंद्र होना चाहिए और मुझे उम्मीद है कि –  कोई इसे महसूस करेगा।”

अल्मोड़ा अपनी स्वास्थ्यप्रद  जलवायु के लिए प्रतिष्ठित है, जिसको महात्मा गांधी के शब्दों से समझ सकते है – 
“हिमालय की मनमोहक सुन्दरता, उसकी प्राणदायी जलवायु और सुकून देने वाली हरियाली, जो आपको इस तरह से घेर लेती है, कि फिर उससे अधिक कुछ चाह नहीं रहती. मैं  सोचता हूँ –  कि इन पहाड़ियों का सौन्दर्य दुनिया के किसी भी सुन्दर स्थान से से अधिक  है या उनके बराबर हैं.. अल्मोड़ा की पहाड़ियों में लगभग 3 सप्ताह बिताने के बाद मुझे अतिशय आश्चर्य है कि – हमारे लोगों को अच्छे स्वास्थ्य की तलाश के लिए यूरोप क्यों जाते है!”

अल्मोड़ा यों कुछ 2-4 दशक पुराना नहीं, सदियों का इतिहास समेटे हैं, भारतीय गणराज्य का हिस्सा बनने से पूर्व यह ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा रहा, उससे पूर्व लगभग 120 वर्ष गोरखा राजाओं ने यहाँ राज किया, उनसे पूर्व करीब 400 साल चंद राजा इस जगह का नेतृत्व करते रहे, और उसी समय इस स्थान का नाम आलम नगर से बदल कर अल्मोड़ा किया गया, चंद राजाओं से पूर्व लगभग 600 – 700 वर्ष कटयूरी राजाओं के अधीन रहा अल्मोड़ा, तब राजपुर नाम से जानी जाती थी यह जगह।  

स्कन्द पुराण के मानसखंड और विष्णु पुराण के अनुसार यहाँ महाभारत के समय भी मानवों के रहने के संदर्भ मिलते है। अल्मोड़ा के निकट लखुडियार मे प्रगेतिहासिक मानवों के बनाए चित्र दिखाई देते है। 

विभिन्न काल खंडों मे अलग अलग सास्कृतिक और राजनयिक परिवर्तन के साथ शहर और यहाँ के लोगों ने यहाँ की ऊंची पहाड़ियों के साथ समय बिता – शांति मे अनासक्ति यानि नॉन-एटेचमेंट को सीखा।

अल्मोड़ा प्राचीन काल से ही प्राणियों रहने के लिए इसलिए भी सुविधाजनक रहा होगा, क्योकि यहाँ जगह जगह नौले/ धारे  यानि प्राकृतिक जल स्रोत, हुआ करते थे, इन प्रकृतिक स्रोतों के निकट मंदिर भी दिखाई देते है। 

दो तीन दशक पूर्व तक अल्मोड़ा की अधिकतर आबादी नौलों के आस पास रहती थी, और जल की आपूर्ति इन्हीं स्रोतों पर निर्भर थी, अब जगह जगह पानी की लाइन बिछने के बाद से  नगर का विस्तार बढ़ता जा रहा है। कई नौले अब भी है लेकिन उन पर निर्भरता कम होने से, लोग उनके संरक्षण के प्रति उदासीन हो गए हैं।  

1960 तक पिथोरागढ़ भी अल्मोड़ा का हिस्सा हुआ करता था, चंपावत पिथोरागढ़ जनपद  का भाग था, और बागेश्वर जनपद 1997 मे अल्मोड़ा से अलग हुआ। 

1871 मे अल्मोड़ा मे रामजे हाई स्कूल की स्थापना हुई जो फिर इंटर कॉलेज बना, इसी तरह 1871 वर्तमान मे राजकीय इंटर कॉलेज जीआईसी नाम से जाने जाने वाले शेक्षणिक संस्थान की नीव पड़ी । 

तब हाई स्कूल और इंटर्मीडियट ही उच्च शिक्षा हुआ करती थी, और अल्मोड़ा मे दूर – दूर से लोग शिक्षा प्राप्त आते थे, यहाँ का माहौल इतना इंटेलेक्चुवल हुआ करता करता कि – अल्मोड़ा को बुद्धिजीवियों का गढ़ माना जाता, नवम्बर 2000 तक उत्तराखंड राज्य बनने से पूर्व अल्मोड़ा उत्तर प्रदेश का हिस्सा था, यहाँ से निकले लोग राज्य, देश और दुनियाँ की उन्नति मे अपना प्रभावशाली योगदान देते हैं।

स्वामी विवेकानंद, महावतार बाबा, लाहड़ी महाशय, परमहंस योगानन्द,  महात्मा गांधी, रवीन्द्रनाथ टैगोर सहित अनेकों भारतीय संत, आमजन और विदेशियों ने यहाँ की पहाड़ियों मे अपना समय बिता –  अपने – अपने समय मे यहाँ की ऊर्जा और शांति से प्रभावित और प्रेरित हो चुके है। 

यहाँ की हवाएँ – लोगों को क्रिएटिव ऊर्जा से भर देती है ।  यहाँ लोगों का जीवन के प्रति नजरिया स्पष्ट है – वो यहा तो यहाँ की गलियों और आस पास की पहाड़ियों मे लांघते अपना एक शांतिपूर्ण जीवन गुजार देते है। यां – यहाँ से मिली ऊर्जा से दुनियाँ मे अपनी एक अलग राह बना लेते है। 

अल्मोड़ा मे देखने को मिलता है   –  आधुनिकता और परंपरा का संगम। बुद्धिमता और सरलता का मिश्रण।

अल्मोड़ा के बारे मे अधिक जानने के और विभिन्न स्थलों को एक्स्प्लोर करने के लिये इस प्लेलिस्ट को देख सकते है।

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