चलिए ले चलूं आपको अपने शहर अल्मोड़ा, नैनीताल से कुछ 60 किमी की दूरी पर, खुद में समेटे हुए जाने कितने वंशो की, राजाओं की गाथायें स्वतंत्रता संग्राम से लेकर अब तक की निशानियां संजोये हुए।
समय बदलता रहा पर नहीं बदला है मेरा शहर, जहाँ खेलता है हमारा बचपन, जवान होते हमारे सपने और अपनी लड़कियों की विदाई के बाद भी दिल खोल के स्वागत करता और नए लोगो को अपने रंग में रंगने वाला हमारा अल्मोड़ा।
ऊँचे ऊँचे पहाड़ों के बीच से झांकता कुनमुनाता सा सूरज जब अपनी गेरुई रंगत बिखेरता हैं तभी वो छप जाती है माँ के चूल्हों में, बिखर जाती है घरों की धेलियों के ऐपण में, और यहाँ की ब्वारियों के माथे के सिन्दूर में, और फिर शुरू हो जाता है मंदिरो में घंटियों का और मस्जिदों में अज़ान का मधुर संगीत, यहाँ की सुबह ऐसे ही शुरू होती हैं, फिर शुरू होती है ज़िन्दगी जीने के लिए जद्दोजेहद, स्कूल को जाते बच्चे, दफ्तर जाते लोग ,सफाई के बाद खुलती हुई यहाँ की बाज़ार, बाज़ार ज़्यादा बड़ी नहीं पर शुरू हो जाती है धारानौला बस स्टैंड से और ख़त्म होती है हुक्का क्लब पर।
यहाँ आपको मिल जाएगी धारानौला बाज़ार,जहाँ से गुज़रते आपको मिलेगी बावन सीढ़ी और वहां से तीन रास्ते, एक मेरे स्कूल एडम्स गर्ल्स इंटर कॉलेज को, दूसरा नंदा देवी बाज़ार को और तीसरा लाला बाज़ार को, लाला बाज़ार में आपको मेडिकल स्टोर, कपड़ों की दुकानें, कॉस्मेटिक और सुमंगलम और साह होटल मिल जायेगा जहाँ बच्चे अपने माता पिता का हाथ थामे खरीददारी के बाद समोसे और लस्सी से थकान मिटाने के लिए बैठते हैं, हो सकता है कि समय के साथ मेनू बदल गया हो पर मुझे यही याद है, सुमंगलम के मोमो चाऊमिन सब आपको बहुत पसंद आएंगेऔर यहीं पर हैं अल्मोड़ा का शायद सबसे पुराना स्कूल, रैम्से स्कूल जो कुमाऊं के अंग्रेज़ कमिश्नर हैनरी रैम्से के नाम पर है और यहीं पर सारी प्रदशनियाँ लगायी जाती है।
पहले यहाँ की बाज़ार पटाल की होती थी, पर बाद में उन पटालों में बारिश के समय पानी भर जाता था तो इसलिए अब उन पटालों की जगह आधुनिक टाइलों ने ले ली है पर खूबसूरती वहीं बरक़रार है, आगे चलने पर आपको नन्दादेवी बाज़ार मिलेगी जहाँ हैं जोगा लाल साह की दुकान और उनकी प्रसिद्ध और मुँह में पिघलती गुजिया अगर आपने अभी तक नहीं खायी है तो ज़रूर खाइयेगा, आगे बढ़ने पर नंदादेवी का मंदिर है और यहीं लगता है, अल्मोड़ा का भव्य और सुप्रसिद्ध नन्दादेवी का मेला, जहाँ आपको पूजा करती माओं और झूला झूलते, बाजा बजाते बच्चों में अपना बचपन फिर से मिल जायेगा ,अपने बुबु का हाथ पकड़े बच्चे और उन बूढ़ी हो चुकी आँखों में शायद फिर आपको अपने बुबु मिल जाये और विदा होती नंदादेवी में शायद आपको यहाँ की बेटियों की भीगी आँखे मिल जाये, यहाँ से आगे चलने पर आपको मिलन चौक मिलेगा और वहीं पर मिलेगा आपको भगवान बुक डिपो और अशोका होटल और किताबें खरीदते कुछ बच्चे, यहाँ पर शनि देव का मंदिर है जहाँ हर शनिवार लोग सुबह अँधेरे में पूजा करने जाते हैं और शाम भी, और भी बहुत लोग होते थे, यहाँ से फिर ऊपर को बढ़ते हुए जागनाथ टॉकीज़ होता था कभी जहाँ अब विशाल मेगामार्ट है फिर मेरा स्कूल।
तो चलिए अब चलते हैं लाला बाज़ार की तरफ जहाँ आपको मिल जायेगा लोहे का शेर, पहले ये इतना रंगीन नहीं था जितना अब इसे सजा दिया गया है और अब आप आसानी से इसे ढूंढ सकते है,जब फ़ोन नहीं थे तब लोग यहीं पर एक दूसरे का इंतज़ार करते थे,आगे आता है अल्मोड़ा अस्पताल और कई मेडिकल स्टोर, और सबसे पुराना दुमंजिला स्टोर उसका असली नाम मुझे नहीं पता, जब से होश सम्हाला है तब से यही सुनती आयी हूँ और वहीं कहीं पर मिल जायेंगे दिलबहार छोले की अपनी छोटी सी दुकान गले में लिए घूमते छोले वाले अंकल, जिसका स्वाद आपको वापिस अंकल को ढूंढने पर मजबूर कर देगा और यहीं से आगे दो रास्ते हैं ,एक बस स्टैंड की तरफ और दूसरा कचहरी बाज़ार की तरफ, तो पहले बाज़ार घूम लेते हैं यहाँ पर भी आपको बहुत दुकाने मिल जाएँगी बाकि शहरों की ही तरह पर नहीं मिलेंगी तो ज़मीं में लगी दुकानें, जहाँ आपको मिलेंगे पहाड़ी जड़ीबूटियां जैसे बालछड़ी बालों के लिए, और जम्बू-गदरेड़ी यहाँ के पहाड़ी खाने में तड़का लगाने के लिए और भी बहुत कुछ और आगे बढ़ते हुए आपको मिलेगी सबसे पुरानी अनोखे लाल की बर्तनों की दुकान और राजहंस फोटो स्टूडियो और बहुत सारे ब्यूटी पार्लर, जिनमें मेरे पसंदीदा रोज़ी अंकल जो शादी के इतना साल बाद भी शहर की बेटियों को नहीं भूले और वापिस अल्मोड़ा जाने पर अपनेपन का एहसास करवा देते हैं, और सबसे पुरानी और मशहूर सलीम अंकल की जूतों की दुकान, अब भले ही हम कितने ही बड़े शोरूम से कितने भी बड़े ब्रांड के जूते पहन ले पर यहाँ के जूतों को पहनने और खरीदने में जो ख़ुशी होती थी वो कहीं नहीं और यही से ठीक ऊपर रास्ता जाता है कचहरी को जो कभी फोर्ट मेयरा या लाल मंडी का किला कहलाता था।
आगे चलने पर आपको रघुनाथ मंदिर मिलेगा,जहाँ पर आपको भक्त और मंदिर से सटी दुकान में कुमाउँनी ऐपढ़ से सजी चौकियां और बहुत सारी चीज़े मिलेंगी जिन्हे आप खरीद सकते हैं अल्मोड़ा की निशानी के रूप में और यहाँ का रंगवाली पिछोड़ा भी सबसे अलग है जो सभी शुभ कामों में महिलाएं पहना करती हैं।
आगे आपको मिलेंगे बाजार से सटे खूबसूरत घर जो अल्मोड़ा की प्राचीनता का अहसास करवाते हैं, बस आप चलते जाइये और बाज़ार भी साथ चलती जाएगी, यहाँ घूमते हुए लोगो में शायद आपको कभी कोई अपना मिल जाये या आप खुद को ही ढूंढ ले कभी कॉलेज या स्कूल जाते बच्चो में या दोस्तों की टोलियों में और चौधरी चाट हॉउस, जहाँ गोलगप्पे, सौंठ के बताशे और आलू की टिक्की जैसा स्वाद आपको कहीं और नहीं मिल पायेगा आगे आपको हुक्का क्लब मिलेगा और गलियों से नीचे जाने पर चौघानपाटा जहाँ आपको मिलेगा गाँधी पार्क, बहुत पुराने डॉक्टर गुसाईं सिंह और अल्मोड़ा बुक डिपो जहाँ से हम सारी प्रतियोगी परीक्षाओं के फॉर्म खरीदते थे, तब ऑनलाइन फॉर्म नहीं हुआ करते थे और किताबे जो कहीं नहीं मिल पाती थी वो यहाँ मिल जाती थी।
यही पर सड़क से नीचे है पोस्ट ऑफिस और जी.आई. सी., आगे आपको ए.आई.सी भी मिलेगा, बाकि बहुत से नए और प्राइवेट स्कूल भी खुल गए हैं, जिनकी मुझे ज़्यादा जानकारी नहीं है और कुछ दूरी पर आता है मेरा कॉलेज, सोबन सिंह जीना परिसर अल्मोड़ा, मैं यहाँ भी ले जाउंगी आपको पर अल्मोड़ा घुमाने के बाद और हां ब्राइटन कार्नर ज़रूर जाइएगा और वहाँ का बर्गर ज़रूर खाइयेगा, और डूबता हुआ सूरज जब सोने से पहले पूरे आकाश को रंग जाये तब आप भी अपनी ज़िन्दगी में ये रंग भर लीजियेगा और फिर निकल जाइएगा अल्मोड़ा से मिलने, तो चले फिर अब बस स्टैंड की तरफ पर वह जाने से पहले और भी सुरम्य जगह हैं जहाँ मैं आपको ले जाउंगी पर अगले ब्लॉग में, तो अल्मोड़ा से जुड़ने के लिए मुझे फॉलो कीजिये और हाँ बस स्टैंड से बस पकड़ने से पहले खीम सिंह की दुकान से हमारे अल्मोड़े की बाल मिठाई, सिंगौड़ी और चॉकलेट अपने दोस्तों, रिश्तेदारों के लिए ले जाना न भूले।
और आशीर्वाद लेने चितई मंदिर, कसारदेवी, कटारमल, जागेश्वर और खगमरा ज़रूर जाएँ और जो कुछ भी मैं नहीं लिख पायी हूँ वो मैं अपने अगले ब्लॉग में लिखूंगी।
कैसा लगा आपको मेरा शहर ज़रूर बताएं और जुड़े रहिये अल्मोड़ा के बाकि दर्शनीय स्थल घूमने के लिए मेरे साथ और तैयारी कीजिए अल्मोड़ा घूमने की अपने परिवार के साथ जब स्थिति अनुकूल हो जाये।
मेरे शहर में

ये लेख मैं अपने प्यारे बुबु (नानाजी ) स्व o श्री मंगू लाल जी को समर्पित करना चाहूंगी ,जिनकी वजह से मुझे अल्मोड़ा को अपना शहर कहने का और यहाँ की मिट्टी से जुड़ने का मौका मिला।
आप सभी का बहुत बहुत धन्यवाद,मेरा लेख पढ़ने के लिए,कैसा लगा कमेंट बॉक्स में बतायें और मेरे सभी पोस्ट तक पहुँचने के लिए मुझे फॉलो करना न भूले।
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