Almora Online | Explore Almora - Travel, Culture, People, BusinessAlmora Online | Explore Almora - Travel, Culture, People, Business
Aa
  • होम
  • अल्मोड़ा जनपद
    • इतिहास
    • दर्शनीय स्थल
    • फोन/ संपर्क
    • Culture
  • ब्लॉग
  • गैलरी
    • तस्वीरें
Reading: घुघुतिया – उत्तरायणी | मकर संक्रांति
Share
Aa
Almora Online | Explore Almora - Travel, Culture, People, BusinessAlmora Online | Explore Almora - Travel, Culture, People, Business
  • होम
  • अल्मोड़ा जनपद
  • ब्लॉग
  • गैलरी
Search
  • होम
  • अल्मोड़ा जनपद
    • इतिहास
    • दर्शनीय स्थल
    • फोन/ संपर्क
    • Culture
  • ब्लॉग
  • गैलरी
    • तस्वीरें
Have an existing account? Sign In
Follow US
Uttarayani Mela
AlmoraAlmoraContributors

घुघुतिया – उत्तरायणी | मकर संक्रांति

Gayatri Maulekhi
Last updated: 2021/12/13 at 1:13 PM
Gayatri Maulekhi Published January 9, 2021
Share
SHARE

उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में मकर संक्रांति एक बड़ा त्योहार है. कुमाऊं में इसे ‘घुघुतिया’ और ‘काले कौवा’ के नाम से जाना जाता है। उत्तराखंडी पर्व-त्योहारों की विशिष्टता यह है कि यह सीधे-सीधे ऋतु परिवर्तन के साथ जुड़े हैं। मकर संक्रांति इन्हीं में से एक है। क्योंकि इस दिन भगवान सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करते हैं। और सौर मंडल में भी एक बडा़ बदलाव होता है। जिसमें सूर्यदेव अपनी चाल बदल कर दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर चलने लगते हैं। इस लिए इस त्यौहार को उत्तरायणी का त्यौहार (उतरैणी) भी बोला जाता है।

Contents
कुमाऊं का प्रसिद्ध घुघुतिया त्योहारदान की जाती है खिचड़ीउत्तरायणी  मेलागिन्दी मेलाबागेश्वर का ऐतिहासिक उत्तरायणी मेलाघुघुतिया त्यौहार एक, रंग अनेक लोककथा

और इसी तिथि से दिन बड़े व रातें छोटी होने लगती हैं। लेकिन, सबसे अहम् बात है मकर संक्रांति से जीवन के लोक पक्ष का जुड़ा होना। यही वजह है कि कोई इसे उत्तरायणी, कोई मकरैणी (मकरैंण), कोई खिचड़ी संगरांद तो कोई गिंदी कौथिग के रूप में मनाता है। जबकि कुमाऊं में घुघुतिया और जौनसार में मकरैंण को मरोज त्योहार के रूप में मनाया जाता है।

कुमाऊं का प्रसिद्ध घुघुतिया त्योहार

कुमाऊं में मकर संक्रांति के मौके पर घुघुतिया त्योहार मनाया जाता है। इस दिन गुड़ व चीनी मिलाकर आटे को गूंथा जाता है। फिर घुघते बना उसे घी या तेल में तलकर उसकी माला बनाते हैं। बच्चे इन मालाओं को गले में पहन के कौवों को ‘काले कव्वा काले, घुघुती मावा खाले’ कहकर बुलाते हैं। घुघुति पहाड़ो में पाया जाने वाला एक पक्षी (Bird- Dove or Spotted Dove) भी होता हैं। इस दिन हरिद्वार, बागेश्वर आदि संगम स्थलों पर बड़े-बड़े मेले भी आयोजित होते हैं।

दान की जाती है खिचड़ी

उत्तराखंड के मैदानी क्षेत्रों में मकर संक्रांति पर ‘खिचड़ी पर्व’ मनाया जाता है। इस दिन सूर्य की पूजा की जाती है। चावल और दाल की खिचड़ी खाई और दान की जाती है।

उत्तरायणी  मेला

गिन्दी मेला

हर साल मकर संक्रांति के दिन पौड़ी गढवाल जिले के यमकेश्वर ब्लॉक के थल नदी और डाडामंडी में गिंदी का मेला लगता है पहाड़ों में इन मेलों की अपनी विशिष्टता और महत्व है। ‘माघ’ माह के शुरुवात में, पूरे क्षेत्र में कई मेलों का आयोजन होता है, लेकिन ‘डंडामंडी’ और ‘थलनदी’ का ‘गिन्दी’ मेला पूरे क्षेत्र में सबसे प्रसिद्ध है, जिसमे दूर-दूर के स्थानों से लोग भाग लेते हैं। ये मेले बहादुरी, आनन्द, साहस और प्रतिस्पर्धा के प्रतीक हैं। ग्रामीणों की दो टीमों में बांटकर मैदान में एक विशिष्ट प्रकार की गेंद से खेल खेला जाता है। इस खेल में, प्रत्येक टीम गेंद को अपनी तरफ खींचने की कोशिश करती है और जीतने वाले ग्रामीण उत्सव और नृत्य करते हुए गेंद को अपने साथ ले जाते हैं।

मेले की शुरुआत बौंठा गांव के छवाण राम तिवाड़ी ने सन् 1877 में की थी। छवाण राम की तीन पत्नियां थीं और ये पेशे से कारोबारी थे लेकिन तीन पत्नियों में से एक पत्नी का मायका डबरालस्यूं में था। वो हर साल मकर संक्रांति के दिन अपने मायके गिंदी का मेला जाया करती थीं। इसी दौरान छवाण का भी मन हुआ कि वो मेला देखने जाए। क्योंकि वो अपनी पत्नी से मेले की तारीफें सुनते थे और वो भी एक बार अपनी पत्नी के साथ उसके मायके गए। मेला देखने के बाद छवाण राम इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने अपने गांव डाडामंडी में भी मेले का आयोजन करवाया। तभी से हर साल डाडामंडी में हर साल मकर संक्रांति के दिन बड़े मेले का आयोजन किया जाता है।

बागेश्वर का ऐतिहासिक उत्तरायणी मेला

उत्तराखंड में मकर सक्रांति या उत्तरायणी के अवसर पर नदियों के किनारे अलग अलग स्थानों में मेले लगते है। लेकिन उत्तराखंड तीर्थ बागेश्वर में हर साल आयोजित होने वाली उतरैणी मेले का पर्व कुछ अलग होता है यह मेला बागेश्‍वर में सरयू और गोमती नदी के तट पर हर साल मकर सक्रांति के मौके पर उत्तरायणी मेले आयोजित होता है। बागेश्‍वर में आयोजित होने वाला उत्‍तरायणी मेला 1 हफ्ते तक चलता है और भारी संख्या में लोग इस मेले में शामिल होने के लिए पहुंचते हैं। कुमाउं क्षेत्र में उत्तरायणी मेला बहुत मशहूर है। इस मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। श्रद्धालु सरयू और गोमती नदी के संगम पर डुबकी लगाते हैं और बागनाथ के मंदिर  में भगवान शिव के दर्शन करते हैं एवम् भिक्षुकों को दान-दक्षिणा देकर पुण्य अर्जित करते हैं।

घुघुतिया त्यौहार एक, रंग अनेक 

कुमाऊ के धारचूला तथा उसके आसपास के इलाकों में घुघुतिया त्यौहार को मंडल त्यार के नाम से जाना जाता है। इस दिन मंडल नामक स्थान पर काफी बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। इस दिन महिलाएं घरों की साफ सफाई करती है गोबर व मिट्टी को मिलाकर उससे घर की पुताई की जाती है। तथा गेहूं के हरे भरे खेतों में जाकर गेहूं के पौधों के जड़ों को मिट्टी समेत उखाड़ कर घर लाया जाता है।

तथा उन पौधों को रोली, अक्षत व चंदन लगाकर मकान की खोली पर जगह-जगह चिपकाया जाता है। इस अवसर पर घर में अनेक तरह के पकवान बनाए जाते हैं। तथा साथ ही साथ अनेक लोक गीत गाए जाते हैं व पारंपरिक नृत्य का आनंद भी लिया जाता है। इसमें बच्चे, बडे़, बुजुर्ग सब इसमें बड़े उत्साह से अपना योगदान देते हैं।

लोककथा

घुघुतिया त्यौहार क्यों मनाया जाता है? इस सम्बंध में अलग-अलग विचार सुनने को मिलते है। एक मत ये है कुमाऊँ में चंद राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी। निःसंतान राजा व रानी इस बात के लिए हमेशा दुखी रहते। वहीं राजा का विश्वास पात्र मंत्री यहीं सोचता कि राजा का कोई उत्तरधिकारी न होने के कारण राज्य का आधिपत्य उसको मिल जाएगा।

एक रोज राजा व रानी बागेश्वर के बागनाथ मंदिर गये वहाँ उन्होने भगवान शिव से संतान का सुख मांगा। भगवान शिव के आर्शिवाद से कुछ समय बाद राजा के घर बालक के रूप में संतान हुई। राजा-रानी उसे बड़े लाड़ प्यार से पालते थे। रानी प्यार से उसे घुघुति पुकारती थी। रानी ने उसे एक मोति की माला पहनायी हुई थी जो कि बालक को बहुत पसंद थी। वह उस मोति की माला को अपने से कभी अलग नहीं होने देता था।

बालक जब भी कोई हठ करता या रानी की बात नहीं मानता तो रानी उसे डराने हेतु कहती कि अगर वो कहना नहीं मानेगा तो उसकी माला बाहर कौवो को दे देगी। डराने हेतु रानी कौवो को पुकारती कि – काले कौवा काले घुघुति माला खाले। रानी कुछ खाना बाहर रखे रहती जिससे एक कौवा अक्सर उनके आंगन में आया करते थें। राजकुमार भी कौवे के लिए खाना रखता जिससे उस कौवे से उसकी दोस्ती हो गई।

एक रोज सत्ता लालच में राजा के उसी मंत्री ने मौका पाकर राजकुमार घुघुति को मारने के मकसद से अपहरण कर सुनसान जंगल की तरफ ले गया। मंत्री का यह कृत्य देखकर कौवा उस मंत्री के पीछे-पीछे उड़ने लगा। कौवे ने अपनी आवाज से बाकी कौवों को भी एकत्र कर लिया। राजकुमार घुघुति के अपने छुड़ाने के प्रयास व मंत्री के जोर जबरदस्ती के बीच राजकुमार के गले की माला टूट कर जमीन पर गिर गई। कौवे ने मौका पाकर माला उठाई और राजमहल ले गया। बाकि कौवों ने मंत्री पर चोंच मारकर आक्रमण कर दिया जिससे मंत्री को वहाँ से भागना पड़ा। उधर मित्र कौवे ने राजमहल में जोर-जोर से अपनी काव काव से लोगो का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया और जंगल की तरफ को उड़कर फिर वापस आकर इशारा करने लगा। राजा रानी सहित सेना और लोग उस कौवे का अनुसरण करते करते जंगल की तरफ भागते-भागते गये। कौवा उन्हे उसी जगह ले गया जहाँ वह राजकुमार घुघुति था। राजकुमार को पाकर राजा रानी की खुशी का ठिकाना न रहा। कहा जाता है फिर घर आकर रानी ने बहुत सारे पकवान बनाए और घुघुति से कहा कि ये पकवान कौवों को खिलाए। यह भी माना गया कि धीरे-धीरे यह बात पूरे कुमाऊँ में फैल गई और राजा के आदेश पर इस दिन यह त्यौहार मनाना जाने लगा जिसमें कौवों को बुलाकर पकवान खिलाए जाने लगे।

एक दुसरा मत यह है कि बहुत पहले यहा कोई घुघुति नाम का राजा था। उसकी मृत्यु उत्तरायणी के दिन कौवो के द्वारा बताई गई थी। उत्तरायणी के दिन उसकी मृत्यु टालने के लिए ये उपाय किया गया कि उत्तरायणी के दिन सुबह से ही कौवों को धुधुत, पूरी आदि खिलाते हुए उलझाये रखना है। ऐसा करा गया और इस प्रकार राजा की मृत्यु टल गयी। क्योकि उत्तरायणी की सुबह पकवान बनाने में देर न हो इसलिए रात को ही पकवान तैयार कर के कौवो के लिए माला बना पिरो के रखने की परंपरा चल पड़ी।

उत्तरायणी के दिन काले कौवा मनाने का एक कारण यह भी है कि कौवा विष्णु भगवान को अनन्य भक्त माना जाता है। उत्तरायणी की रात को स्नान करके विष्णुपूजन किया जाता है। सयाने लोग विष्णुपूजन में व्यस्त रहते है, जबकि बच्चे विषणु भक्त कौवे को प्रसन्न करते है क्योकि मकर संक्रांति का अधिपति शनि होता है और शनि काले वर्ण का होता है इसलिये काले वर्ण के पक्षी कौवे का आह्वाहन किया जाता है।

घुघुती के साथ-साथ कुमाऊँ में उत्तरायणी पर्व को बहुत बड़ा पर्व माना जाता है ये पर्व माघ स्नान का श्री गणेश है क्योंकि माघ माह को सभी महीनों में सर्वश्रेष्ट माना जाता है। जो लोग पूरे माह स्नान करने में असमर्थ रहते है वो लोग माघ माह के पहले तीन दिन जरूर स्नान करते है। माघ माह में तीन दिन स्नान करके उतना पूण्य प्राप्त होता है जितना पुष्कर, गंगा, प्रयाग व अन्य तीर्थ स्थलों में 10 वर्ष स्नान करके मिलता है। पुरे माघ माह में सबसे ज्यादा महत्व स्नान का है जो सूर्य के मकर राशि के तरफ संक्रमण करते वक्त सूर्योदय से पहले किया जाता है। इस समय का स्नान सब प्रकार के पापों को नष्ट करने वाला है। कुमाऊँ में मकर संक्रांति या उत्तरायणी पर्व पर बागेश्वर सरयू में स्नान उतना महत्वपूर्ण है जितना प्रयाग की त्रिवेणी में स्नान करना।

Gayatri Maulekhi January 9, 2021
Share this Article
Facebook Twitter Email Print
Sher Da Hanuman
AlmoraContributorsStory

लाल बहादुर दाई उर्फ़ हनुमान…

यूँ तो दोस्तों हमारे आसपास होने वाले घटनाक्रमों के बीच कई बार ऐसा भी होता है कि जब कोई अंजान…

Sushil Tewari Sushil Tewari January 28, 2023
Ikbal bhai barbar almora
AlmoraContributorsStory

इकबाल नाई उर्फ़ बबाल भाई…

यूँ तो दोस्तों हमारे समाज में लम्बी- 2 फेंकने वालों बड़ा महत्तवपूर्ण स्थान रहा है और रहेगा.. हालाकि उन्होंने फेंकने…

Sushil Tewari Sushil Tewari December 18, 2022
Nandu Manager
AlmoraContributors

अल्मोड़ा में साह जी का त्रिशूल होटल और नंदू मैनेजर

नंदू मैनेजर... यूँ तो दोस्तों सच है कि इस दुनियाँ में बिना मेहनत मशक्कत के कुछ नहीं मिलता बावजूद इसके…

Sushil Tewari Sushil Tewari December 2, 2022
Almora to Chitai Trek
Almora

मैं आज 18 वें वर्ष में प्रवेश कर रहा हूँ।

आज 30 नवम्बर को मैंने 17 वर्ष पूर्ण कर 18 वें वर्ष में प्रवेश किया। 2005 में मैंने आज ही…

AOL Desk AOL Desk November 30, 2022
Almora Story
AlmoraStory

अल्मोड़ा आकर एक परिवार की चमकने और डूबने की कहानी।

बादल... बेला… यों तो दोस्तों इस दुनिया में होने वाला हर लम्हा, हर चीज़ परिवर्तनशील है जो कि प्रकृति का…

Sushil Tewari Sushil Tewari November 28, 2022
Almora District Library
AlmoraAlmoraNewsUncategorized

अल्मोड़ा ज़िला लाइब्रेरी का नया स्वरूप पुस्तक प्रेमियों का दिल जीत लेगा!

शुक्रिया डी एम साहिबा... दोस्तों तकरीबन छह माह पहले जिलाधिकारी महोदया अल्मोड़ा द्वारा जो एक सराहनीय पहल राजकीय जिला पुस्तकालय…

Sushil Tewari Sushil Tewari November 22, 2022
almroa dashahra
AlmoraCultureUncategorized

दशहरा महोत्सव

हिमालय में अवस्थित अल्मोड़ा अत्यंत सुन्दर व सुरम्य पर्वतीय स्थलों में से एक है । यदि एक बार अल्मोड़ा के…

AOL Desk AOL Desk November 10, 2022
Almora

Almora Introuction

The charm of Almora does not lie in the overcrowded Mall. It lies in other places that include. Nanda Devi…

AOL Desk AOL Desk November 10, 2022
almora ka sher da
AlmoraContributorsStoryUncategorized

विशालकाय बकायन के पेड़ की डालें काटता हुआ शेरदा

हमारा शेरदा उर्फ़ शेरुवा.... यूँ तो दोस्तों अक्सर इतिहास,साहित्य अथवा सिनेमा आदि की दुनिया में कई बार हम ऐसे चरित्रों…

Sushil Tewari Sushil Tewari September 27, 2022
Hariya Pele
AlmoraUncategorized

अल्मोड़ा का पेले (हरिया), कभी फूटबाल का सितारा, अब कहाँ!

आज बात केवल एक खेल प्रतिभा की। हरिया पेले ... जो अल्मोड़ा में 90 के दशक का फूटबाल का जादूगर…

Sushil Tewari Sushil Tewari September 26, 2022

Follow US

Find US on Social Medias
Facebook Like
Youtube Subscribe
Popular
almora people
Almora

अल्मोड़ा नगर भ्रमण (वीडियो)

AOL Desk AOL Desk December 26, 2017
अल्मोड़ा की कुछ तस्वीरें, डॉ हामिद की गैलरी से (III)
कविराज सुमित्रानंदन पंत
अल्मोड़ा : लोगों के विचार, कुमाऊँ की जगह का गैरसैण मंडल का हिस्सा होने पर
ब्राइट एन्ड की एक शाम
- Advertisement -
Ad imageAd image

About

AlmoraOnline
Almora's Travel, Culture, Information, Pictures, Documentaries & Stories

Subscribe Us

On YouTube

2005 - 2023 AlmoraOnline.com All Rights Reserved. Designed by Mesh Creation

Removed from reading list

Undo
Welcome Back!

Sign in to your account

Lost your password?