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मैं हूँ इस पेड़ का गवाह नंबर एक

Bharat Shah
Last updated: 2020/07/10 at 6:25 PM
Bharat Shah Published July 10, 2020
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सन 1988 के दिसम्बर में मैं अल्मोड़ा आ गया था, उससे पहिले इस पेड़ को कभी ध्यान से नहीं देखा था,पर अब जब भी यहाँ से गुजरता तो आराम के लिए कुछ समय बैठ जाता था, मस्त नजारे देखने को, टाइम पास भी हो जाता क्यों कि उस वक्त मेरे ज्यादा दोस्त नहीं थे।

आंधी के झोंको से बोगनवेलिया के फूल सडक पर फैल जाते, ओर इविनिंग वॉक करने वाले लोग एक झलक ऊपर की ओर इसकी सुंदरता को जरुर निहार लेते. अपना दिल भी खुश हो जाता।

पहिले सोचा था अपने ट्रेवल के काम के लिए जल्द ही नैनीताल लौट जाऊंगा लेकिन फिर कुछ अल्मोड़ा में मन सा लग गया शायद किस्मत मुझे इस पेड की मुहब्बत का गवाह बनाना चाहती थी।

इसी बीच भावेश दा से दोस्ती हो गई थी, उन्होंने अल्मोड़ा बुक डिपो के पास ट्रेवल एजेंसी खोल रखी थी, एक दिन बातों बातों में उन्होंने मुझे ट्रेवल पार्टनर बनने के लिए कहा, फिर क्या था मेरा काफ़ी समय यहाँ पर गुजरने लगा। तब बागेश्वर जिला नहीं बना था, ओर न ही मुनस्यारी की पर्यटको को पहचान थी, वे ग्लेशियर जाने के लिए अल्मोड़ा में बेस कैंप की तरह रुक कर तैयारी करते थे।

फिर मैंने 1994 के जून से यहाँ पर पूर्ण रूप से हाई एडवेंचर टूर कंपनी की शुरुआत कर दी,फिर तो सुबह से रात तक यहाँ रहना होता, एसे में जब भी अंदर बैठ कर दिल उकता जाता तो इस पेड़ के नीचे बैठ कर बड़ा सुकून मिलता।
इस छोटे से पार्क में तीन बड़े देवदार के वृक्ष थे, उनमें ये इसलिए ज्यादा खूबसूरत दिखता था क्यों कि इसमें बोगनवेलिया उसी ऊचाई तक लिपटी हुई थी जहाँ तक देवदारु की ऊचाई थी।

पार्क में हमारे पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री स्व. गोविन्द बल्ल्भ पंत जी की मूर्ति है जिसे साल में एक बार उनके जन्मदिन के अवसर पर सजने सवारने का मौका आता है, बाकी समय सब उपेक्षित ही रहता है।

इस पेड़ के नीचे कोई जाति भेद नहीं था सबको शरण थी, दिन में बच्चे अपने एग्जाम के फॉर्म भरते नजर आते तो अभी कोई नया जोड़ा टाइम पास करता नजर आता, लेकिन बाद में कुछ शराबियों ओर दमचीयों ने जगह पर अधिकार कर लिया था तो जोड़ों ने यहाँ आना छोड़ दिया अलबत्ता पोस्ट ऑफिस के पास खड़े होकर वो इस पेड़ को अपनी सेल्फी में जोड़ लेते थे, ताकि पेड़ उनकी मुहब्बत का साक्षी बन जाए।

मैं उन दिनों रात काफ़ी देर तक हाई एडवेंचर ऑफिस में बैठा करता था. एक बार मुझे अगलेदिन बहुत सुबह पर्यटकों के साथ टूर पर जाना था इसलिए मैंने रात घर से खाना मंगा कर ऑफिस में ही सोने का फैसला कर लिया।

सोने के लिए काफ़ी देर तक में बैंच पर अलटता पलटता रहा, ओर नीद आने का नाम नहीं ले रही थी. अचानक किसी ने दरवाजा खटखटाया.. इतनी रात जरूर कोई शराबी होगा, सोच कर मै चिल्लाया कौन है?

मैं देवदार…. तुम्हारा पडोसी,आज मेरा बोगनवेलिया से झगड़ा हो गया है और वो है कि मेरा साथ छोड़ने को तैयार ही नहीं…
मैं अचकचा उठा, आखिर पेड़ कैसे चल सकता है यही सोच रहा था कि उसने फिर से बोलना शुरू किया… सब कुछ सही चल रहा था, मैं अपनी जगह खड़ा था और ख़ुश हो रहा था कि सारे लोग मुझे ही देखते है। लेकिन आज मुझे पता चला कि लोग मुझे नहीं बोगनवेलिया को देख कर खुश होते है, मैं कितना दुखी हूँ, कोई सुनता नहीं मेरी…
आखिर तुम्हें क्या दुख है मैं जैसे नींद में बड़बड़ाया…

मुझे केेैद कर दिया गया है यहाँ, ठीक से सांस तक नहीं ले पा रहा हूँ में लोग इस बोगनवेलिया को मुस्कुराते देख मुझे भूल गए हैं उन्हें शायद ये नहीं पता जब तक मैं हूँ तब तक ये भी है… वह शायद कुछ और कहना चाह रहा था लेकिन गाड़ी के हॉर्न की आवाज़ से नींद खुल गई। मैंने झटपट दरवाजा खोल कर पार्क की ओर देखा पेड़ अपनी जगह पर खड़ा था ओर बोगनवेलिया उसे पूरी तरह से कस कर जकड़े हुई थी.मन में एक सुकून की सांस ली।

आज इस बात को पूरे 26 साल गुजर गए,कल से बहुत तेज बारिश हो रही थी कुछ अनहोनी का आभास होने लगा था, सुबह व्हाट्स एप एक मैसेज पड़ कर मन बैचेन हो गया मित्र नंदन रावत ने फोटो पोस्ट किया था, फोटो को जूम करके देखा देवदार अपनी बोगनवेलिया के साथ धराशाई होकर मालरोड के ऊपर पड़ा था, फिर भी मन नहीं माना फोन करके कन्फर्म किया, न्यूज़ सही थी।

किसी को कोई नुकसान किये बगैर वो गिर गया था अब उसे कोई उठा भी नहीं सकता था, थोड़ी देर के बाद सरकारी कार्यवाही शुरू हो गई पहिले आरी से बोगनवेलिया को काटकर देवदार से अलग किया उसकी टहनियों को लोग कटिंग के लिए अपने घर ले जा रहे थे जबकि देवदार चुपचाप रोड पर पसरा हुआ था शायद उसे अपने अंजाम का पता था, मुझे लगा कह रहा हो कि तुमने मेरी हालत समझने में बहुत देर कर दी।

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Bharat Shah July 10, 2020
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