जानिए – अल्मोड़ा की जनभावनाएं, नए मंडल का हिस्सा होने पर।
कुमाऊं की पहचान ही अल्मोड़ा है और उसे ही कुमाऊं मंडल से अलग करना सही सोच नही है। सिर्फ अफसरशाही को बढ़ावा बाकी तो कुछ नहीं। – आकाश सती
मैं इसका विरोध करता हूँ। अल्मोड़ा खुद कुमाऊँ का मुखिया हिस्सा है। अल्मोड़ा से कुमाऊँ के 3 ज़िला बने हैं कुमाऊँ से कैसे अलग क़िया जा सकता है। ये वही बात हो गई की शरीर से आत्मा निकाल लेने वाली …। सिर्फ राजनीति की जा रही है, उतराखंड मैं हमारे मुख्यमंत्री द्वार। जरुरी या विकास के के कार्यों को छोड़ कर बाकी सारे बेमतलब के कार्यों को किया जा रहा है उत्तराखंड में। युवा रोज़गार के लिए परेशान है, जो रोज़गार निकलते है उसमे दुनिया भर की धांधली हो रही है और मुख्य मंत्री कमिश्नरी बनाने के लिए सूझ रही है… – निशांत मेहता
विकास हो गया हैं दो के तीन हो गए। – महेंद्र सिंह अधिकारी
अल्मोड़ा कुमाऊँ की शान है। कुमाऊँ की शान को उससे अलग करने में लगे है CM – सौरभ कुमार
नेताओं की गैरसैण की जमीन के रेट बढ़ेंगे, अब क्या कुमाऊं रेजिमेंट का नाम भी गैरसैण रेजिमेंट रखेंगे? अब कम्पटीशन एग्जाम के सही उत्तर में बद्रीदत्त पांडे जी कुमाऊँ केसरी कहलायेंगे या गैरसैण केसरी। – महेश चन्द्र कांडपाल
यह तो अल्मोड़ा के लोगों को विरोध करना चाहिए। – पुनीत जोशी
मौजूदा उत्तराखंड सरकार ने लगता है कभी कुमाऊं का इतिहास ही नही पढ़ा है, आज़ादी के समय सिर्फ एक कमिश्नरी थी और वो थी कुमाऊं, जिसमे अल्मोड़ा , नैनीताल जिले थे, सन 1950 में उत्तर प्रदेश के बनने के बाद टिहरी गढ़वाल को भी कुमाऊं कमिश्नरी में शामिल किया था। प्रशानिक सुविधा के लिए बाद में गढ़वाल कमिशनरी को कुमाऊँ से 1969 अलग किया था।
अल्मोड़ा कुमाऊं का महत्वपूर्ण जिला रहा है मगर वर्तमान में इस तरह के तुग़लकी फरमान से सरकार एक और आंदोलन को चुनौती दे रही हैं जबकि विकास के नाम पर तो कुछ किया नही इस डबल इंजन की सरकार ने। आशा हैं यह निर्णय भी उसी तरह का हो जब पोखरियाल ने 2011 में रानीखेत और डीडीहाट को अलग जिला घोषित तो कर दिया मगर कोई अधिसूचना जारी नही की। – सुशील डेविड
पिथौरागढ़, अल्मोड़ा और बागेश्वर को मिलाकर अल्मोड़ा कमिशनरी होनी चाहिए थी। वैसे भी ये जिले और कमिशनरी बनाने से कुछ नहीं होने वाला। सुविधा नाम पर कुछ भी नहीं है यहाँ जिला बनने पर बागेश्वर और चंपावत में कितना विकास हुआ है सभी देख रहे है जनता को मूलभूत सुविधाएं चाहिए न की मंडल और जिले। आम आदमी के सभी काम तहसील स्तर पर ही जाये और उसको उसको अच्छी मेडिकल, शिक्षा व् रोज़गार मिल जाये तो काफी है।
– पाठक राजेंद्र
मूलभूत समस्याओं स्वास्थ्य शिक्षा पर ध्यान देने की आवश्यकता है अस्पताल में डाक्टरों का अभाव स्कूल मे मेन बिषय के अध्यापक नहीं कही प्रधानाचार्य नही कया मङल बन जाने से मुलभुत सम्सयाओ का हल हो पायेगा? – बीरेंद्र नेगी
नयी commissionaire औचित्यहीन और विसंगतिपूर्ण, अल्मोड़ेओर बागेश्वर ज़िले के सत्ता पक्ष के समानित विधायकगण,, इसको लेकर मुख्यमंत्री जी से बात करें। – कार्तिक साह
हम पहले ही कुमाऊँ या गढ़वाल मंडल से परेशान थे, क्योकि हम अपनी देवभूमि को ऐसे अलग-अलग भागों में नहीं देख सकते, और अब एक नया ड्रामा चालू हो गया। बड़े दुर्भाग्य की बात है – जहाँ एक प्रदेश को जोड़ने की बात होनी चाहिए थी, वहां एक और हिस्सा बढ़ाने की बात हो रही है। – ममता अधिकारी बिष्ट
बिल्कुल गलत निर्णय। अल्मोड़ा कमिश्नरी होनी चाहिये। अल्मोड़ा में बागेश्वर और पिथौरागढ, तथा नैनीताल में ऊधमसिंह नगर और चम्पावत होने चाहिये। – कमल पन्त
हमें कुमाऊँनी रहने दो।
– कार्तिकेय जोशी
मैं पूरी तरह असहमत हूँ। बुनियादी ढांचे की हालत इतनी दयनीय होने पर भी कौन इतना उल्टा यात्रा करेगा। – मनोज गोस्वामी
सबसे पुराना (1975) मंडल अल्मोड़ा था, आज यह हुआ। – संजय टम्टा
गलत हुआ है, विरोध होना चाहिए, अल्मोड़ा का विकास आज तक नहीं हो पाया है, तो अब क्या होगा? – संदीप पाण्डेय
ये निर्णय लेकर अल्मोड़ा वालो के साथ सबसे बड़ा मज़ाक किया है – संतोष वर्मा
अल्मोड़ा से आज 3 जिले हैं ,जो अल्मोड़ा मुख्य कुमाऊँ है उसे कुमाऊँ मंडल से अलग नही किया जा सकता।। – विवेक रावल
बिल्कुल गलत निर्णय। अल्मोड़ा कमिश्नरी होनी चाहिये। अल्मोड़ा में बागेश्वर और पिथौरागढ तथा नैनीताल में ऊधमसिंह नगर और चम्पावत होने चाहिये – संजू बाबा
प्रदेश सरकार क्या केन्द्र सरकार सब बना ही बना रहे है केन्द्र ने 100 स्मार्ट सिटी बनाई थी, कहीं दिखाई दे रही है क्या? प्रचार प्रसार में कोई कमी नही है यही इन की खासियत है कुछ को बुरा लगेगा लेकिन आँख से पट्टी तो एक दिन खोलनी पडेगी। – महेंद्र सिंह अधिकारी
अल्मोड़ा को कुमाऊं में ही रहने देते। – मोहन जोशी
यह पूरी तरह से गलत है .. अल्मोड़ा कुमाऊं की राजधानी है (चंद वंश के समय से)। – हेम गुणवंत
मेरी पहचान कुमाऊँनी।
कुमाऊं की सांस्कृतिक राजधानी अल्मोड़ा को ही कुमाऊं से अलग कर दिया, 1300 सालों के सांस्कृतिक इतिहास की रत्तीभर भी समझ रखते तो ये नहीं होता। गढ़वाल कुमाऊँ-मंडल का कोई geographical या political विभाजन तो है नहीं ये सांस्कृतिक विभाजन था। हमार त्यार ब्यार, गीत संगीत सब कुमाऊँनी छु।
ख़तङूआ त्यार लै कसी मनूल?
अरे भलमानसो! इतुक मन छु त स्थायी राजधानी बणैं द्यो गैरसैंण कें। – निखिलेश पंवार
कमिश्नरी हटाकर जिलों को तरजीह देना चाहिए।
– भुवन चौबे
पहले रामगंगा जिले का गठन किया जाय, अगर वहां के लोग चाहे तो उन्हे नये मंडल में सम्मिलित किया जाय, अन्यथा सम्पूर्ण अल्मोड़ा कुमाऊँ मण्डल में ही रहे। – गोपाल सिंह बिष्ट
हमसे ही कुमाऊं की पहचान थी, अब हमें ही कुमाऊं से अलग कर दिया। – मोनिका बिष्ट
हम इसका विरोध करेंगे।
– ठाकुर नीरज सिंह
गढ़वाली थे नहीं, कुमाऊँनी रहने नहीं दिया।
करना गढ़वाल और कुमाऊँ को एक था,
लेकिन महाशय ने बांट दिया, सच मन बहुत दुखी है अल्मोड़ा कुमाऊँ की शान को कुमाऊँ से अलग कर के। – वासु उप्रेती
इसके अतिरिक्त – मिक्की जोशी, युगल कुमार जोशी, ठाकुर मोहन बनौला, नितिन बहुगुणा, हेम पाण्डेय, गोपाल सिंह बिष्ट आदि ने भी इस सम्बन्ध में नए मंडल में जाने पर अपने विचार व्यक्त किये, कतिपय कारणों से सभी टिप्पणियां इस लेख में नहीं दी जा सकती। सभी प्रतिक्रियाएं अल्मोड़ा ऑनलाइन के फेसबुक पेज पर मिली टिप्पणियों से संकलित किये गए है। फेसबुक में अल्मोड़ा ऑनलाइन से अपडेट रहने के लिए क्लिक करें।
The best known fair of this region, held in the month of September at Almora town, is organized since the Chand kings ruled this place. It is believed that ‘Nanda’ used to be the family Goddess of Chanda dynasty. The word meaning of the word ‘Nanda’ is prosperity.