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कॉलेज के दिन और छात्र संघ के चुनाव

MK Pandey
Last updated: 2021/12/27 at 9:44 PM
MK Pandey Published December 27, 2021
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Soban Singh Jeena Campus, Almora
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अल्मोड़ा मे GIC से निकलने के बाद जब SSB कैम्पस अल्मोड़ा (अब University) पहुचे, कंधे मे बगैर बैग टाँगे, बगैर यूनिफ़ोर्म के, बगैर क्लास attend करने की अनिवार्यता के, तो ऐसा लगा 1947 मे जो आजादी की बात हुई थी, वो शायद यही होती होगी।

और ये महसूस कर – और भी अच्छा लगा और उन सवालो के जवाब – घर में कम लिए जाते, – कि आज क्या पढ़ा कॉलेज में। और यह मानकर कि हमारी उम्र परिपक्वता की सीमा में पहुंच चुकी और हम अपना भला बुरा खुद समझ सकते हैं – सो इस बात को भी नज़र अंदाज़ किया जाने लगा – कि हमारे कॉलेज जाने – आने का वक्त क्या हैं और हम जाते है भी या नहीं, इस सब से हम भी कुछ बेपरवाह हो चले थे, पहले 10 से 4 के बीच जो कॉलेज के नाम निकलकर, मित्रो के साथ तफरीह करने में जो वक्त बिताते उसका विस्तार गया, और घर में रुकने का वक्त कम होने लगा।

उन दिनों एक और दिलचस्प अनुभव हुआ, फ़र्स्ट इयर के बच्चों को जैसा होता होगा, कॉलेज मे चुनाव की सरगर्मी शुरू हुई, और इंटर कॉलेज के एक साथ रहने वाले छात्र कई गुटों मे बंट गए, एक छात्र प्रतिनिधि के समर्थक और उसके प्रतिद्वंदी छात्र नेता के समर्थक अपने आप विरोधी हो जाते।

चुनाव के समय छात्र नेता – हाथ जोड़कर अपने – 2 समर्थकों की दावते करते, समर्थक बनाने के लिए रिश्ते बनाए जाते, क्षेत्रवाद की दुहाई दी जाते जैसे बागेश्वर – कपकोट के छात्रों का एक गुट, ऐसे ही अल्मोड़ा के आस पास के अलग अलग क्षेत्रों के छात्रों का अलग गुट बनाया जाता। ऐसे ही जातिवादी समीकरण भी बिठाये जाते।

चुनाव का क्या सार! मेरे जैसे आम और गैर राजनीतिक छात्रों को कभी समझ नहीं आता। क्योकि स्टूडेंटस कॉलेज मे आते है – पढ़ाई करने और डिग्री लेने। इसके सिवाय उनकी जरूरत होती ही क्या है? वैसे भी कॉलेज मे पढ़ाई करने वाले थोड़े ही छात्र होते। बाकी तो सर्दियों मे गुनगुनी धूप सेकने और कॉलेज के रंग देखने आते।

चुनाव के पहले दिन होने वाले, ज़्यादातर छात्र नेता इतनी बड़ी संख्या मे समूह को पहली बार एड्रैस कर रहे होते, उनके सीनियर उनको बताते कि थोड़ा सा पेय पदार्थ ले लेना जिससे हिम्मत आ जाए, छात्र नेता दुष्यंत कुमार या किसी ऐसे ही कवि या शायर कि पंक्ति से बात शुरू करते – हालांकि उस पंक्ति का उनके आचरण या व्यक्तित्व या भाषण से कुछ लेना देना होता नहीं। बाकि वो क्या बोलते किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता, न सुनाई देता, समर्थकों के लिए निर्देश होता – जैसे ही छात्र नेता – अपनी लाइन पूरी करे तो तालियों से कैम्पस गुंजा दो। और किसी कारण वश बोलने मे लड़खड़ा जाये तो – उसकी लरजिश छुपाने और भी दम लगाकर तालियों का ज़ोर लगा दो।

गैर राजनीतिक पृष्ठभूमि से आई छात्राओं को भी पता नहीं होता था कि प्रत्याशी कौन है और चाहता क्या है – उस समय माना जाता था – जिसमे ज्यादा तालियाँ बजती है, ज्यादा भीड़ इकट्ठी होती है, लड़कियों के वोट उस ओर गिर जाते है। हालकि बाद मे बराबरी मनवाने लड़कियां भी कॉलेज के चुनाव मे कूदने लगी।

मैंने फ़र्स्ट इयर मे एक छात्र नेता को उनकी अतिशय विनम्रता और सहृदयता से प्रभावित होकर वोट दिया। जिनसे परिचय एक मित्र ने कराया था – दोस्तों के साथ कुछ दिन चुनाव प्रचार भी किया – कई मित्रों के समक्ष दावा किया कि इससे बेहतर नेता नहीं मिलेगा। वह सीनियर छात्र नेता अध्यक्ष का चुनाव लड़ रहे थे – चुनाव के दिन कुछ लड़कियां उनसे अपनी पार्टी के लिए पैसे ले रही थी, तब ही हम भी वहाँ पहुचे – वो हमसे प्रेम से बोले कुछ पैसे चाहिए तो बताओ – हम उनकी इस अनुकंपा पर भाव विभोर हो उठे, इंकार करते हुए नहीं (नाम और उसे पीछे … दा लगाकर) कैसी बात कर रहे है – वो मुस्कुराए (पता नहीं हमारी अव्यवहारिकता या मूर्खता पर)

चुनाव बीते – अच्छी खबर मिली – वो अध्यक्ष बने, जुलूस निकाला गया शहर मे, जीते गुट के लोगों ने – हारे गुट के कुछ लोगों की पिटाई की, बाद मे पता चला कि यह परंपरा है, जो पहले से चली आ रही है।

चुनाव के कुछ दिन बाद अध्यक्ष एक दो बार पटाल बाज़ार मे घूमते मिले – हमने मुस्कुरा कर उनका अभिवादन किया। उन्होने देखा नहीं, फिर एक दो बार और राह मे रूबरू हुए और इग्नोर करते हुए – निकल गए। एक बार जब मैंने राह मे देखा तो रोक कर कहाँ – दद्दा आप तो अब नमस्ते का जवाब भी नहीं देते – उन्होने बेरुखी से जवाब दिया वो क्या था, यह तो ठीक से याद नहीं – लेकिन भाव ये था कि – “क्या नमस्ते कर मैं उन पर कोई एहसान कर रहा हूँ, चुनाव खत्म – पैसा हजम।”

मुझे राजनीति की समझ देने वाले उस छात्र नेता और तत्कालीन कॉलेज अध्यक्ष से यह मेरी अंतिम मुलाक़ात थी।
TAGGED: college life, poltics in college life
MK Pandey December 27, 2021
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