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Almora Online | Explore Almora - Travel, Culture, People, Business > Blog > Contributors > Almora > सरकारी आवास से अपना आशियाना
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सरकारी आवास से अपना आशियाना

Rajesh Budhalakoti
Last updated: 2020/09/05 at 6:11 PM
Rajesh Budhalakoti Published April 20, 2020
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जनाब उम्र के इस पड़ाव पर जब भी मुड़ कर देखा एक बात बहुत याद आती है, यहाँ हल्द्वानी में कठघरिया मे बसने के बाद जब भी प्लमबर, कारपेन्टर, की खोज मे दोडाया जाता हूँ या उनका इंतजार कर रहा होता हूँ तो वो सुनहरे दिन याद आते हैं, जब हम भी राजाओ की तरह सरकारी मकान मे रहा करते थे निश्चिंत, निर्भय और निर्भीक।

मित्रो क्या दिन थे! कभी दो कमरे के मकान मे गुजारा किया, तो कभी सुविधाजनक बडा घर, कोई देहरादून फारेस्ट रिसर्च संस्थान के चीड़, देवदार के पेड़ो के बीच था तो कही से पवित्र गंगा नदी मात्र कुछ कदम दूर और शिमला प्रवास मे तो मुख्यमंत्री राजा वीर भद्र सिंह के नज़दीकी पड़ोसी, सामने धोलाधार पर्वतों की श्रंखला, यानी नौकरी और सेवा निवृति का अधिकतर समय सरकारी आवास में ही कटा…।

जनाब क्या दिन थे, जैसे चाहो रहो, जहाँ चाहो – कील ठोको… कैलेंडर टांगो, फोटो लगाओ… चारपाई चाहे उत्तर करो या दक्षिण कोई मनाही नहीं… दो अदद कुर्सी एक मेज चाहे इस कमरे में रखो चाहे घसीट कर दूसरे मे कोई कहने वाला नहीं।

साल में एक बार सरकारी पुताई, दो साल में एक बार पेन्ट, नल खराब… शिकायत दर्ज करा दो, प्लमबर हाजिर, बिजली खराब… फोन करो, आदमी हाजिर। न हाय हाय न किच किच… न मोल तोल न कोई सामान लाने का झंझट… अब याद आ रहे हैं मित्रो वो सुनहरे दिन. बस एक ही मलाल रहता था कि – अपना कोई आशियाना नही…।

अब वो भी हो गया… शिमला प्रवास के दौरान जोड तोड कर… ठेके मे हम ने भी मकान बनवाया और अब लगभग चार साल से निवास भी कर रहे है लेकिन जनाब कोई दिन ऐसा नही बीता होगा जब प्लमबर, बिजली वाले भय्या ने हमारा चैन खराब न किया हो…।

शुरु शुरु मे जब तक ठेकेदार की पेमेन्ट बाकी थी वो साहब – साहब कह कर आगे-पीछे घूमता था, कोई भी काम हो तुरंत हाज़िर, समस्या दूर, ऐसा लगता था के हल्द्वानी मे हमारे सुख दुख का एक मात्र साथी यही है और, ईश्वर ने ठेकेदार के रूप मे भाई सरीखा इन्सान मेरी जिंदगी मे भेज दिया, इसी मुगालते मे हमने ठेकेदार की पूरी पेमेन्ट कर दी लेकिन पूरी पेमेन्ट मिलने के बाद अब बिष्ट जी ठेकेदार ने हमारा फोन उठाना भी छोड दिया। रास्ते मे कभी दिखे तो नजरे मिलाना छोड दिया अब हमारे पास उन्हे कोसते रहने के सिवाए और कोई चारा नही रहा… ।

कभी बाथरूम का नल लीक कर रहा है, कभी टोयलेट चोक होने का समाचार आप तक पहुचेगा। सुकून के पल जाने कहाँ चले गए।

किसी ने ठीक ही कहा हैं… कि मेरा जैसा महा मूर्ख मकान बनवाता है, और बुद्धिमान उसमे रहा करते है । Fools build houses and wise men live in them

आज सुबह सोचा था गरम गरम चाय की प्याली के साथ आराम कुर्सी में बैठ कर, साथ मे तलत महमूद के दर्द भरे गाने सुनुँगा।

जाये तो जाये कहाँ, समझेगा कौन यहाँ ,…

या ए मेरे दिल कही और चल…  इतनी तन्मयता से गुनगुना रहा था।

जनाब जैसे ही मे बाहर कुर्सी डाल्, इससे पहले कि चाय की फ़रमाइश कर, तलत मेह्मूद के गाने तलाशता, भीतर से श्रीमती जी आवाज आयी – “पूजा करने जा रही हूँ – भट के डुबूके गैस पर रखे है देख लेना कही तले न लग जाये…”

बस जनाब फिर क्या था, उसमे हम हाथ मे डाडू लिये, डुबुको को तला लगने से बचाते रहे और गाते रहे…

ए मेरे दिल कही और चल… तेरी दुनिया से दिल भर गया...

यकीन मानिए मेरी अवाज मे तलत से ज्यादा दर्द था… ।

AlmoraOnline.com में यह लेख पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद।  

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Rajesh Budhalakoti September 5, 2020 April 20, 2020
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